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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2777
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भूगोल में सुदूर संवेदन की सार्थकता एवं उपयोगिता पर विस्तृत लेख लिखिए।

उत्तर -

भूगोल में सुदूर संवेदन की सार्थकता और उपयोगिता

प्राकृतिक संसाधन के संवर्धन एवं विकास के उद्देश्य से सुदूर संवेदन तकनीक का व्यापक प्रयोग किया जाता है। वर्तमान समय में उपग्रहों से प्राप्त चित्रों का प्रयोग संसाधन के संरक्षण वं प्रबंधन के लिए किया जा रहा है। रिसोर्ससैट से प्राप्त सूचनाओं का उपयोग कर संसाधनों के सूचीबद्ध किया जा रहा है और मानचित्र के माध्यम से विषयवस्तु मानचित्र के सेट तैयार करने का कार्य किया जा रहा है। इसका उद्देश्य पूरे देश के लिए जीआईएस डेटाबेस का निर्माण करना है। उपग्रह से प्राप्त चित्रों, आँकड़ों का प्रयोग प्राकृतिक संसाधनों की जानकारी अथवा उसके अध्ययन, अन्वेषण एवं विकास के लिए किया जा रहा है। इसका उद्देश्य विभिन्न संसाधनों के संबंध में सूचना उत्पन्न करना और विकासात्मक परियोजना के लिए आवधिक सूचनाओं का उपयोग करना है, यथा 1,50,000 पैमाने पर भू-उपयोग, भू-आवरण, मृदा, भू-आवरण, मृदा, भू-अपक्षयन, आर्द्रभूमि, वनस्पति, बर्फ और हिमनद, भू-आकृति विज्ञान और 12,50,000 पैमाने पर भू-उपयोग भू-आवरण जैसे प्राकृतिक संसाधन सूचना स्तरों को तैयार करने के लिए आईआरएस प्रतिबिंब (55 मी०, 23 मी० x 5.8 मी०) का उपयोग किया जा रहा है। संसाधनों के संरक्षण, संवर्धन एवं कुशल प्रबंधन के लिए डिजिटल तकनीक का प्रयोग करते हुए विगत कुछ वर्षों से मानचित्र तैयार करने का कार्य किया जा रहा है। इसके लिए बहुकालिक आईआरएस आँकड़ों का उपयोग किया जा रहा है। उपग्रह से प्राप्त चित्रों के उपयोग से 12,50,000 पैमाने पर राष्ट्रीय स्तरीय भू-उपयोग/भू-आवरण मानचित्रण सफलतापूर्वक संपन्न किया गया है और इस पर आधारित देश का भू-उपयोग/भू-आवरण मानचित्रण और अंतरिम रिपोर्ट तैयार किया जाता है।

सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना तंत्र प्रणाली
के प्रयोग द्वारा जल संसाधनों का अनुप्रयोग

जल हमारे मानव जीवन के लिये एक अत्यधिक बहुमूल्य उपहार है। जल संसाधन म जीवन कृषि एवं जल शक्ति उत्पादन के लिये अत्यन्त आवश्यक है। हमारे देश में व सामयिक एवं स्थानिक रूप में अनियमित वितरण होने के कारण बाढ़ एवं सूखे की समस्या पाई जाती है। विभिन्न उद्देश्यों के लिये जल की मांग में निरंतर वृद्धि एवं देश के द्वारा बाढ़ एवं सूखे की समस्याओं के समाधान के लिये इस बहुमूल्य संसाधन का इष्टतम उपयोग एवं उपयुक्त प्रबंधन अतिआवश्यक है। इसके अतिरिक्त सिंचाई एवं जल निकासी तंत्र के लिये जल संसाधनों का उपयुक्त विकास एवं प्रबंधन अतिआवश्यक है। सतही जल के साथ-साथ भूजल के लिये भी जल संसाधनों का समाकलित प्रबंधन अतिआवश्यक है। जल संबंधित समस्त समस्याओं जैसे बाढ़, सूखा उपयुक्त सिंचाई प्रबंधन इत्यादि के समाधान हेतु उपयुक्त जल प्रबन्धन पद्धतियों को स्वीकार करने की आवश्यकता है। नदियों एवं आवाह क्षेत्रों के जल नियंत्रण, वितरण एवं आवंटन संबंधी समस्याओं के समाधान के लिये जल संसाधन स्रोतों की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रभावी जल प्रबंधन सर्वेक्षण एवं मानचित्रण की मूल आवश्यकता है। रूढ़िवादी अभियांत्रिकी अध्ययनों के लिये स्थलाकृति मानचित्र, हवाई फोटोग्राफी एवं भू-सर्वेक्षण आवश्यक पद्धतियाँ हैं। परन्तु इन समस्त पद्धतियों का प्रयोग महँगा, अधिक समय लेने वाला तथा कठिन है। जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के लिये सुदूर संवेदी एवं भौगोलिक सूचना तंत्र तकनीकें उपयुक्त सूचनाओं का आधार तैयार करने में सहायता प्रदान करती है। भूमि एवं जल संसाधनों से संबंधित विभिन्न विशिष्टताओं के अध्ययन के लिये उपग्रह द्वारा प्रदत्त सुदूर संवेदी आंकड़े एवं भौगोलिक सूचना तंत्र द्वारा प्रदत्त विश्लेषण क्षमताएँ तकनीकी दृष्टि से उपयुक्त पद्धति प्रदान करती हैं। यह उल्लेखनीय है कि सुदूर संवेदी तकनीक की कुछ सीमाएँ हैं। जिनके कारण इनके प्रयोग द्वारा रूढ़िवादी सर्वेक्षण तकनीकों को आधुनिक तकनीकों में पूर्णतः परिवर्तित करना संभव नहीं है।

सुदूर संवेदन, शुद्ध एवं वास्तविक समय मूल्यांकन निर्धारण एवं अन्तरदेशीय जल संसाधनों के पूर्वानुमान का निरंतर प्रबोधन एवं भविष्यवाणी करता है। इस तंत्र का प्रयोग विभिन्न प्लेटफार्मों उदाहरणतः उपग्रह एवं वायुमान से पृथ्वी की सतह को प्रेक्षित करने के लिये किया जाता है तथा यह विशाल क्षेत्रों पर संसाधनों एवं पर्यावरण के बारे में सूचनाओं के एकत्रीकरण एवं विश्लेषण की सम्भावनाओं को दर्शाता है। सुदूर संवेदी तकनीकें पृथ्वी की सतह से उत्सर्जित या परावर्तित विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा को एकत्रित करती हैं। ये विशिष्टताएँ उपग्रह या वायुयान के प्रयोग द्वारा प्राप्त सुदूर संवेदी आंकड़ों के मापन, मानचित्रण एवं प्रबोधन की सम्भावनाएँ प्रदान करती हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्र, विभिन्न भू-आच्छादन विशिष्टताओं के प्रबोधन एवं मापन हेतु निम्न लागत एवं सशक्त सम्भावनाएं प्रदान करते हैं सुदूर संवेदी आंकड़ों के उपयोग का एक महत्त्वपूर्ण लाभ जल विज्ञानीय प्रबोधन एवं निदर्शन के लिये स्थानिक एवं कालिक सूचनाओं के जनन की सुविधा है, जो जल प्रबंधन अध्ययन में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

अनेक जल संबंधी अध्ययनों के लिये केवल सुदूर संवेदी आंकड़े पर्याप्त नहीं हैं। इन आंकड़ों को अन्य स्रोतों से एकत्र आंकड़ों के साथ विलय करना आवश्यक है। किसी अध्ययन हेतु स्थानीय सुदूर संवेदी आंकड़ों में वर्षा, वाष्पन, वनस्पति, भू-आकारिकीय एवं मृदा आंकड़े चारणीय हैं। इसके अतिरिक्त अन्य सूचनाएँ जैसे ट्यूबवैल की स्थिति एवं प्रकार, वर्षा एवं मापी इत्यादि के बारे में जानकारी उपलब्ध होना आवश्यक है। इन उपलब्ध जानकारियों को 'भन्न मानचित्रों द्वारा भौगोलिक सूचना तंत्र की सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है। गोलिक सूचना तंत्र, आंकड़ों के एकत्रीकरण, प्रबंधन एवं प्रदर्शन का एक सशक्त सॉफ्टवेयर रु तथा इसका प्रयोग जल विज्ञान एवं जल संसाधन संबंधी अध्ययनों में प्रभावी रूप से किया जाता है।

जल संसाधन के विकास और प्रबंधन के साथ प्रकृति की कई समस्याएँ संबद्ध है, जैसे बाढ़ और सूखे की स्थिति जल ग्रसनता, जलाशय अवसादन में वृद्धि, जल गुणता प्रदूषण, हिमाच्छादन क्षेत्र का मूल्यांकन एवं दुर्गम क्षेत्र अध्ययन आदि। इन सभी समस्याओं के समाधान के लिये सुदूर संवेदन आंकड़ों और जी०आई०एस० को मिश्रित करके एक व्यवस्थित दृष्टिकोण के माध्यम के प्रयोग की आवश्यकता है। सुदूर संवेदन और भौगोलीय सूचना तंत्र प्रणाली का प्रयोग जल संसाधन और जल प्रबंधन के अनेक क्षेत्रों जैसे भू-उपयोग/भू-आच्छादन का वर्गीकरण, बाढ़ मैदानी प्रबंधन, जल विभाजकों का मानचित्रण एवं प्रबोधन आवाह क्षेत्र का अध्ययन, भूजल अध्ययन एवं निर्णय लेने हेतु जी०आई०एस० के अनुप्रयोग आदि में अधिक से अधिक हो रहा है।

भू-उपयोग/भू-आच्छादन वर्गीकरण

भू-आच्छादन अर्थात् पृत्वी की सतह पर उपलब्ध मृदा, वनस्पति, जल, शहरीकरण इत्यादि का आवरण मानव गतिविधियों एवं प्राकृतिक तत्वों पर निर्भर है। भूमि आच्छादन का बहु-स्पेक्ट्रमी वर्गीकरण, जल संसाधनों के लिये प्रथम स्थापित सुदूर संवेदी, अनुप्रयोग हेतु सर्वप्रथम स्थापित किया गया। कृषि, वन प्रबंधन, शहरीकरण एवं भूमि सतह एवं सतह की ऊपरी मृदा से होने वाली वाष्पीकरण किया (जिसका प्रत्यक्ष संबंध वनस्पति से होता है) के कारण भूमि की भौतिक विशिष्टताएँ परिवर्तित हो जाती हैं। जिसके परिणामस्वरूप अपवाह की मात्रा, आर्द्रता और भूजल पुनः पूरण अधिक प्रभावित होते हैं। अनेक अनुसंसाधनकर्ताओं ने विभिन्न उपग्रह आंकड़ों से प्राप्त भू-आच्छादन वर्गीकरण का जल संसाधन के अध्ययन में अन्तर्वेषी आंकड़ों की तरह उपयोग किया गया है। भू-उपयोग की विशिष्टताओं के मानचित्रण द्वारा उनके सतही अभिलक्षण का अध्ययन किया जा सकता है। स्वस्थ हरी वनस्पति, स्पेक्ट्रम दृश्यता और निकट अवरक्त क्षेत्रों में विविध विशेषताएँ होती हैं जबकि शुष्क मिट्टी के दोनों स्पेक्ट्रमों में अपेक्षाकृत एक स्थिर परिवर्तन होता है। इस प्रकार उपयुक्त बहुस्पेक्ट्रमी आंकड़ों का उपयोग करके भूमि पर उपलब्धता विविध विशिष्टताओं को विभेदित किया जा सकता है। सुदूर संवेदन द्वारा आंकड़ों का जलविज्ञानीय निदर्श में परिवर्तन करने में उपयोग होता है। बहुत से जलविज्ञानीय निर्देशों में वनस्पति मापदण्ड का संबंध निदर्श के घटकों (जैसे वाष्पीकरण रोकना) के चयन पर निर्भर करता है। सुदूर संवेदन तकनीकी द्वारा भू-उपयोग/भू-आच्छादन हेतु अनुसंधान के रूप में सुदूर संवेदन का उपयोग जलविज्ञान निदशों में हो रहा है। इन प्रयासों से भूमि की सूचनाओं को केन्द्रित करके एस०सी०एस० अफवाह वक्र संख्या विधि के द्वारा धारा प्रवाह भविष्यवाणी में प्रयोग कर सकते हैं।

बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का प्रबंधन

नदी आकृति, नदी विस्तार, बाढ़ विस्तार की सीमाएँ एवं अवधि के बारे में विश्वसनीय आंकड़े, उपयुक्त बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं की योजनाओं के लिये आवश्यक हैं। बाढ़ के खतरे वाले क्षेत्रों का क्षेत्रीकरण करने हेतु परम्परागत तरीकों से बाढ़ के तटों और तटबंधों के ऊपर से प्रवाहित होने वाले जल का अनुमान लगाने के लिये भू-आकृति मानचित्रों एवं नदी ज्यामिति मानचित्रों जिन्हें भू-सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त किया जाता है, के आधार पर बाढ़ अपवाह को नदी में से प्रवाहित किया जाता है। उपग्रह से प्राप्त सुदूर संवेदन आंकड़ों की उपलब्धता ने बाढ़ की गति का अध्ययन काफी सरल कर दिया है। सुदूर संवेदन तकनीकी द्वारा उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों की सहायता से समस्त उपलब्ध घटनाओं के बारे में विश्वसनीय सूचना प्राप्त की जा सकती हैं।

सुदूर संवेदन तकनीक, विभिन्न परिमाण की बाढ़ों के बाढ़ आप्लावन क्षेत्र के बारे में सूचना प्रदान कर सकती है, ताकि बाढ़ परिमाण का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के साथ संबंध स्थापित किया जा सके। उच्च क्षमता वाले उपग्रह आंकड़े, बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र एवं बाढ़ नियंत्रण कार्यों के बारे में उपयोगी सूचना प्रदान करते हैं। किसी विशेष पुनरावृत्ति काल के लिये बाढ़ विस्तार का आकलन किया जा सकता है। निकटवर्ती कन्टूरों से नियमित ऊँचाई के लिये बाढ़ आप्लावन क्षेत्रों की सूचना प्राप्त की जा सकती है। जो बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र के लिये मानचित्र बनाने हेतु अत्यधिक महत्त्वपूर्ण निवेश है।

जी०आई०एस० बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र का निर्धारण करने एवं बाढ़ के कारण जलस्तर में वृद्धि होने के कारण बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों की भविष्यवाणी कराने के लिये विस्तृत सीमा वाला सॉफ्टवेयर प्रदान करता है। जी०आई०एस० आकारकीय आंकड़ा बेस, एकत्रित स्थानिक आंकड़ों जैसे आकारकीय ऊँचाई नमूना तथा भविष्य में होने वाली बाढ़ की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में सहायक हो सकती है। जी०आई०एस० डाटाबेस में कृषि, सामाजिक, अर्थव्यवस्था, सूचना तंत्र, जनसंख्या एवं मूलभूत संरचना के आंकड़े भी एकत्र किये जा सकते हैं। इन आंकड़ों की सहायता से बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों हेतु नीति निर्धारण पुनरुद्धार योजना एवं क्षति मूल्यांकन करने में सहायता प्राप्त होती है।

जल विभाजक क्षेत्रों का मानचित्रण एवं प्रबोधन

जल, भू-संसाधनों एवं उनकी उत्पादकता के संरक्षण के लिये जलविभाजकों की उचित योजना आवश्यक है। इस उद्देश्य के लिये जलविभाजकों का अभिलक्षण एवं विश्लेषण मूलभूत वकता है। जलविभाजक अभिलक्षणों में भू-विज्ञानीय, जल भू-वैज्ञानिक, ९-३कारिकीय, जलवैज्ञानिकीय मृदा, भू-आवरण, भू-उपयोग आदि प्राचलों का मापन

.. है। प्रबंधन की आवश्यकताओं के आकलन हेतु एरियल एवं अंतरिक्ष में लगे सुदूर संवेदन संवेदकों का प्रयोग जलविभाजक क्षेत्र के अभिलक्षणों हेतु किया जा सकता है। सुदूर संवेदी आंकड़ों की सहायता से विभिन्न फिजियोग्राफिक प्राचलों जैसे आकार संरचना, भौगोलिक स्थिति, जल निकासी ढाँचा इत्यादि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। जलनिकासी बेसिन में लिये गए मापनों द्वारा सरिता संख्या, लम्बाई एवं प्रवणता का आकलन किया जा सकता है। सुदूर संवेदन तकनीकी सहायता से विभिन्न प्रकार के जलविभाजक क्षेत्रों में भू-उपयोग परिवर्तन एवं भू-अपक्षण के मध्य अपवाह एवं अवसाद के लिये परस्पर संबंध स्थापित किया जा सकता है।

आवाह क्षेत्र का अध्ययन

जल प्रबंधन में भारी निवेश के बाद भी हमारी सिंचाई परियोजनाओं के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण आवाह क्षेत्र में जल प्रबंधन पर विशिष्ट ध्यान देने की आवश्यकता है। आवाह क्षेत्र, जल निकासी सीमाओं के मध्य एक नहर प्रणाली द्वारा सिंचित किया जा सकने वाला कुल क्षेत्र है। सुदूर संवेदन तकनीक आवाह क्षेत्र में भूमि जल संसाधनों के उपयुक्त प्रबंधन द्वारा अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने में एक उपयोगी भूमिका प्रदान कर सकती है। जल की सीमित मात्रा की उपलब्धता के कारण आवाह क्षेत्रों में सिंचाई के लिये जल की आपूर्ति का प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। इसके समाधान हेतु आवाह क्षेत्रों में सिंचाई हेतु कुल मांग एवं आपूर्ति की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। अधिक क्षेत्रों को सिंचाई प्रणाली के अंतर्गत लाने के कारण कृषि उत्पादन, आकलन एवं प्रभावी जल प्रबंधन के लिये फसल का प्रबोधन भी आवश्यक हो जाता है। इसके अतिरिक्त सुदूर संवेदन तकनीक योजना बनाने एवं निर्णय लेने में एक सहायक भूमिका प्रदान कर सकती है। सिंचित भूमि, फसल के चयन तथा उत्पादन उपलब्धि के आकलन में सुदूर संवेदन तकनीकों की उपयोगिता, विभिन्न अनुसंधानों में प्रमाणित हुई है। भूमिगत जल उपलब्धता के वास्तविक आंकड़े एवं सतह जल निर्धारण के सुदूर संवेदित आंकड़ों के सम्मिश्रण द्वारा एवं भूमिगत जल के संयुग्मी उपयोग हेतु योजनाएँ तैयार की जा सकती हैं।

जल ग्रसनता एवं मृदा लवणता

आवाह क्षेत्र में जल ग्रसनता और मृदा लवणता उन कुछ प्रमुख भूमि अपक्षरण प्रक्रियाओं में से हैं, जो मृदा और भूमि संसाधनों के आर्थिक और प्रभावी प्रयोग को प्रतिबंधित करते हैं। आवाह क्षेत्रों में जल ग्रसनता के निर्धारण के लिये बहुस्पेक्ट्रम और बहुकालिक दूरसंवेदी आंकड़े बहुत उपयोगी होते हैं। उपग्रह आंकड़ों द्वारा जल ग्रसन क्षेत्रों और बाढ़ का त्वरित और अधिक विश्वसनीय चित्रण किया जा सकता है जल ग्रसनता दो स्थला ने घटकों (1) स्थानीय प्रवणता कोण एवं (2) जल निकासी क्षेत्रों पर निर्भर करती है। जल ग्रसनत संभावना, जल निकासी क्षेत्रों की वृद्धि होने से बढ़ती है और स्थानीय प्रवणता कोण में कम होने पर घट जाती है। क्योंकि जल ग्रसनता स्थलाकृति से संबंधित है अतः अंकीय भूभाग निदर्शन (डी०टी०एम०) जल ग्रसनता क्षेत्रों का पता लगाने में सहायता कर सकता है। डी०टी०एम० प्रवणता आदि के बारे में सूचना प्रदान करते हैं जो कि परिणामतः जल ग्रसनता के लिये संदेहास्पद क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।

आवाह क्षेत्रों में जल ग्रसनता क्षेत्र का अवलोकन करने के लिये उपलब्ध खुले कुँओं में नियमित अन्तराल पर मानूसन से पूर्व और मानूसन के पश्चात् वर्ष में दो बारे प्रेक्षण लिये जाते हैं। जल की गुणवत्ता ज्ञात करने के लिये भी आंकड़े एकत्र किये जाते हैं। इस प्रकार एकत्र किये गये आंकड़ों का प्रयोग जल लेख और जल के जलदायी स्तर की गहराई के मानचित्र तैयार करने के लिये किया जाता है। इन मानचित्रों का उपयोग आवाह क्षेत्र में जल ग्रसन क्षेत्रों के चयन में किया जा सकता है। क्षेत्र का वास्तविक आंकड़ा, जो बिंदु आंकड़ों के रूप में उपलब्ध है, का प्रयोग कर भू-जल गहराई वितरण मानचित्रों को जी०आई०एस० में तैयार किया जा सकता है। इन मानचित्रों की सहायता से उथली भूमि जल क्षेत्र में जल ग्रसनता के लिये अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है। सामान्यतः 0-1.5 मीटर पर भूमि जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों को जल ग्रसन या लवणता प्रभावित क्षेत्रों के रूप में स्वीकार किया जाता है।

हिम आवरण अध्ययन

हिम, पर्वतीय क्षेत्रों में, वर्ष के एक महत्त्वपूर्ण भाग में, जलविज्ञानीय चक्र का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। हिम आवरण मापन, प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों और सुदूरता की वजह से कठिन है, परंतु विश्वसनीय नहीं है। हिम अक्सर पृथ्वी पर अनियमित तरीकों से जमा होती है और वायु में पुनः वितरित होती है। इस प्रकार एक छोटी दूरी पर हिम गहराई और इसके लिये हिम तुल्य जल में व्यापक परिवर्तन प्रदर्शित होता है। परिणामतः हिम आवरण के बिन्दु मापन से अपर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। हिमालय बेसिनों में दुर्गमता के कारण हिम, आवरण प्रबोधन की सीमाएँ हैं। हिम, उच्च परावर्तनता के कारण, पृथ्वी की सतह पर उपलब्ध वस्तुओं में एक है, जिसका दृश्य या इन्फ्रारेड सुदूर संवेदन प्रतिबिम्बों से सरलता से चयनित किया जा सकता है। बर्फ दृश्य तरंगदैर्ध्य में एक उच्च परावर्तनीयता रखता है। हिम की परावर्तनीयता, हिम क्रिस्टल तरल जल की मात्रा, (विशेष रूप से सतह स्तर के निकट का) हिम में अशुद्धियाँ हिम की गहराई, सतही खुरदुरापन आदि पर निर्भर होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में हिम के बारे में बहुत कम जानकारी नियमित रूप से एकत्र होने के कारण सुदूर संवेदन तकनीकी ही एक ऐसी व्यवहारिक पद्धति है जिससे पर्वतीय बेसिनों में हिम आवरण के संबंध में उपयोगी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान में दृश्य, इन्फ्रारेड एवं तापीय इन्फ्रारेड आंकड़े जिन्हें विभिन्न उपग्रहों (लैण्ड सेट, आई०आर०एस० नोआ आदि) से प्राप्त किया जाता है, पर्वतीय बेसिनों में हिम आवरण के क्षेत्र विस्तार मानचित्रण के लिये उपयोग किये जा रहे हैं। दृश्य और निकट अवरक्त तरंगदैर्ध्य, क्योंकि हिम पैक में अंदर तक प्रवेश नहीं करते हैं अतः इनका प्रयोग हिम पैक की सतह से ही सूचना प्राप्त करने में किया जाता है। माइक्रोवेव सुदूर संवेदन में शुष्क बर्फ के पैक में प्रवेश करने की क्षमता है और ये बादलों या रात के समय की स्थिति में भी आंकड़े प्राप्त कर सकते हैं। उपग्रह सुदूर संवेदन द्वारा प्राप्त हिम आवरण आंकड़ों का हिम गलन, अपवाह मॉडल में निदर्श प्रयोग किया जा सकता है।

जलाशय अवसादन

भारतीय नदियाँ प्रत्येक वर्ष जलाशयों, झीलों, सागरों एवं महासागरों में काफी विशाल मात्रा में अवसाद अपने साथ प्रवाहित करके ले जाती हैं। अवसादों का एकत्रीकरण, जल की भण्डारण क्षमता, घरेलू तथा जल आपूर्ति, सिंचाई और नौकायन के लिये चैनल की जल वहन क्षमता में कमी कर देता है। परिणामतः सरिताओं में विक्षोभ उत्पन्न हो जाता है निलंबित तलछट जल की स्पष्टता और सूर्य के प्रकाश की भेदक क्षमता को कम कर देता है। जिससे जैविक जीवन प्रभावित होता है। क्योंकि तलछट जल निकायों के नीचे बैठ जाता है, ये वनस्पत्ति को नष्ट करके पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन ला देता है। अवसादन निर्धारण की परम्परागत तकनीक निम्न हैं- (क) जलीय सर्वेक्षण द्वारा तलछट के एकत्रीकरण का प्रत्यक्ष मापन और (ख) अन्तर्वाह बहिर्वाह विधि द्वारा अवसाद सान्द्रता का अप्रत्यक्ष मापन। ये दोनों तकनीकें श्रमसाध्य, समय लेने वाली और महँगी हैं और उनकी अपनी सीमाएँ हैं। प्रयोगशाला में कार्य हेतु निलम्बित अवसाद का नमूना एकीकरण मापन एक महँगा कार्यक्रम है। निकट पूर्व में सुदूर संवेदन तकनीकों के परिचय के साथ जलाशय में अवसादन की मात्रा का निर्धारण एवं वितरण सस्ता और सुविधाजनक हुआ है। पारम्परिक तकनीकों की तुलना में उपग्रह आंकड़ों का यह लाभ है कि ये दिये गये क्षेत्रों के आंकड़ों को 16/22 दिनों में एकत्रित करता है, जो कि रूढ़िवादी तकनीकों में संभव नहीं है।

जल गुणवत्ता अध्ययन

जल गुणवत्ता जल की भौतिक, रासायनिक, तापीय और जैविक गुणों को वर्णित करने के लिये सामान्यतः प्रयुक्त किया जाता है। वर्तमान दिनों में जल की गुणवत्ता में बढ़ते प्रदूषण ने जल गुणवत्ता की जाँच को प्रदूषण में होने वाली वृद्धि को रोकने के लिये और हमारे प्रदूषित जलस्रोतों को शुद्ध करने के लिये आवश्यक बना दिया है। इसके अलावा जल की गुणवत्ता प्रबोधन, सिंचाई, घरेलू जल आपूर्ति जैसे कई उपयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण गतिविधि है। हम सामान्यतः इसे जल की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले बिन्दु या गैर बिन्दु के स्रोतों के रूप में परिभाषित करते हैं। प्रदूषण के बिन्दु स्रोतों का पता सरलता से लगाया जा सकता है। जैसे पाइप पर जंग इत्यादि। गैर बिन्दु पदार्थ अधिक फैलाव, परिदृश्य, जल गति एवं भूमि के उपयोग के साथ जुड़े होते हैं। सभी मानव एवं प्राकृतिक गतिविधियाँ जल के अपवाह में अबिन्दु स्रोतों को यागदान करते हैं तथा इसकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। अनुभाविक एवं अर्द्ध अनुभाविक निदशों के आशांकन एवं मान्यकरण के लिये आवश्यक आंकड़ों के एकत्रीकरण के लिये भूमि (जल) एवं सुदूर संवेदित मापन दोनों का समीक्षण आवश्यक है। जल के नमूनों (निलंबित तलछट, क्लोरोफिल) का विश्लेषण करने के लिये उन्हें समान समय (या उसी दिन) पर एकत्र किया जाना चाहिए। (जिस दिन के सुदूर संवेदी आंकड़े एकत्र किये गये हैं)। जी०पी०एस० की सहायता से नमूना स्थलों की स्थिति का यथार्थ निर्धारण करना चाहिए जिससे तुलना हेतु सुदूर संवेदी तकनीकों से शुद्ध आंकड़े प्राप्त किये जा सके। जल गुणवत्ता हेतु सुदूर संवेदी तकनीकों का अनुप्रयोग उन स्थितियों में सतही जल गुणवत्ताओं के तापीय विशिष्टताओं को प्रभावित करती है, जो मापन हेतु सीमित हैं। निलंबित अवसाद, क्लोरोफिल तेल एवं तापमान जल गुणवत्ता सूचकांक हैं जो सतही जल के स्पेक्ट्रमी एवं तापीय गुणवत्ताओं को प्रभावित कर सकते हैं तथा इनका मापन सुदूर संवेदी तकनीकों द्वारा सरलतापूर्वक किया जा सकता है।

भूजल अध्ययन

सुदूर संवेदन प्रणाली भूजल अन्वेषण में काफी उपयोगी है क्योंकि सुदूर संवेदन आंकड़े उच्च प्रेक्षणात्मक घनत्व के साथ एक बड़े क्षेत्र का सूक्ष्म अवलोकन प्रदान करते हैं। वर्तमान सुदूर संवेदन प्लेटफार्म सतह विशिष्टताओं को रिकॉर्ड करते हैं। भूजल की अधिकांश जानकारी गुणवत्तापूर्ण एवं अर्द्ध मात्रात्मक पद्धतियों से प्राप्त की जाती हैं। सुदूर संवेदन जानकारी प्रायः प्रकृति में अर्थहीन होती है और भूजल विज्ञानीय आंकड़ों के साथ मिलकर ही सार्थक हो सकती है। यदि स्थानीय जानकारी उपलब्ध हो और उसे उपग्रह आंकड़ों द्वारा चयनित किया जा सकता है तो वनस्पति को एक संकेतक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जल संसाधनों के प्रबंधन भूजल पुनः पूरण के मूल्यांकन, सिंचाई के लिये भूजल ड्राफ्ट, क्षेत्र में प्रवाह तंत्रों के चयन के लिये सुदूर संवेदी तकनीक एक सशक्त पद्धति है। पुनः पूरण को प्रभावित करने वाले कारकों में सतही स्थितियों, मृदा एवं भू-आकारकीय, वनस्पति निर्धारण, मृदा एवं जल संरक्षण प्रमुख हैं। भूजल प्रदूषण प्रत्यक्ष रूप से सतही स्थितियों से संबंधित है। सूचकांक पद्धतियों, जलस्तर की गहराई नेट पुनः पूरण, स्थलाकृति एवं जलदायकों की जलीय चालकता भूजल प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।

भौगोलिक सूचना तंत्र, एक निर्णय समर्थन प्रणाली

जी०आई०एस० की व्युत्पत्ति आंकड़ा स्रोतों की सहायता से परिशुद्धता के विविध स्तरों तक की जाती है। प्रत्येक आंकड़ा अपनी विशुद्धता की व्याख्या करता है। आंकड़े के किसी सचित्र प्रदर्शन में हुई अनिश्चितता की विमा अन्तिम निर्णय लेने में सहायक सिद्ध होती है। कोई भी निर्णय विविध घटकों पर निर्भर होता है जो भौगोलिक सूचना तंत्र जैसी एक सूचना प्रणाली में उपलब्ध है तथापि इन आंकड़ों का समुचित उपयोग अभी भी समस्याग्रस्त है।

एक निर्णय समर्थन प्रणाली को पारस्परिक कम्प्यूटर प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जो विविध डोमेन से ज्ञात स्रोतों के सम्मिश्रण द्वारा जटिल समस्याओं के समाधान हेतु नीति निर्धारकों की सहायता करता है। जी०आई०एस० विशेष रूप से विज्ञान व्यापार के क्षेत्र में एक संवादात्मक कम्प्यूटर आधारित प्रणाली के प्रक्रमण हेतु सूचना प्रबंधन तंत्र के लिये फिक्स किया गया। जब जी०आई०एस० को जल प्रबंधन में लागू करते हैं तो इसे स्थानीय विमाओं की आवश्यकता होती है और इसी कारण यह भौगोलिक सूचना तंत्र में सम्मिलित किया गया है।

जल संसाधनों के क्षेत्र में अनुसंधान की आवश्यकता

1. किसी भी जी०आई०एस० से संबंधित अध्ययन में पहला और अत्यधिक महत्त्वपूर्ण पहलू आंकड़ों की उपलब्धता और उसकी अनुकूलता है। स्थानिक जल संसाधनों के अध्ययन के लिये आवश्यक जानकारी का निष्पादन सरलता से होना चाहिये। सुदूर संवेदन तकनीक का प्रयोग जल संसाधनों के विकास तथा उनके प्रबंधन जैसे-भूमि वर्गीकरण, बाढ़ क्षेत्र प्रबंधन आदि में किया जा रहा है।

2. जलविज्ञानीय विज्ञान के भविष्य में उन्नति के लिये निदर्श का आधुनिकीकरण और मूल्यांकन पर्याप्त मात्रा में आंकड़ों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। सुदूर संवेदन तकनीक इस दिशा में एक निर्णायक विकास की भूमिका निभा सकता है। अंकीकृत मानचित्र हेतु विशिष्ट आंकड़ों के अनुरूप विभिन्न साधनों से आंकड़े संग्रह केंद्र में एकत्रित करने होंगे। इस तरह के आंकड़े प्राप्त होने से उल्लेखनीय प्रगति होगी।

3. जल संसाधन निदर्शन के अंतर्गत भौगोलिक सूचना तंत्र का सम्मिश्रण करना एक कठिन प्रक्रिया है फिर भी जल संसाधन के शोध में सुविधा के लिये भौगोलिक सूचना तंत्र के कुछ निदर्श शोधकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराये गये हैं।

4. आधुनिक विकास के लिये डी०एस०एस० ने जल संसाधन तंत्र व सिंचाई में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

5. भविष्य के शोध कार्यों के तुलनात्मक अध्ययन के लिये आजकल बाजार में बहुत से जी०आई०एस० पैकेज अभिलक्षणता और सूची के साथ उपलब्ध हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सुदूर संवेदन से आप क्या समझते हैं? विभिन्न विद्वानों के सुदूर संवेदन के बारे में क्या विचार हैं? स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- भूगोल में सुदूर संवेदन की सार्थकता एवं उपयोगिता पर विस्तृत लेख लिखिए।
  3. प्रश्न- सुदूर संवेदन के अंतर्राष्ट्रीय विकास पर टिप्पणी कीजिए।
  4. प्रश्न- सुदूर संवेदन के भारतीय इतिहास एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- सुदूर संवेदन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- सुदूर संवेदन को परिभाषित कीजिए।
  7. प्रश्न- सुदूर संवेदन के लाभ लिखिए।
  8. प्रश्न- सुदूर संवेदन के विषय क्षेत्र पर टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- भारत में सुदूर संवेदन के उपयोग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  10. प्रश्न- सुदूर संवेदी के प्रकार लिखिए।
  11. प्रश्न- सुदूर संवेदन की प्रक्रियाएँ एवं तत्व क्या हैं? वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- उपग्रहों की कक्षा (Orbit) एवं उपयोगों के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत के कृत्रिम उपग्रहों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- कार्य के आधार पर उपग्रहों का विभाजन कीजिए।
  15. प्रश्न- कार्यप्रणाली के आधार पर सुदूर संवेदी उपग्रह कितने प्रकार के होते हैं?
  16. प्रश्न- अंतर वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
  17. प्रश्न- भारत में उपग्रहों के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- भू-स्थाई उपग्रह किसे कहते हैं?
  19. प्रश्न- ध्रुवीय उपग्रह किसे कहते हैं?
  20. प्रश्न- उपग्रह कितने प्रकार के होते हैं?
  21. प्रश्न- सुदूर संवेदन की आधारभूत संकल्पना का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के सम्बन्ध में विस्तार से अपने विचार रखिए।
  23. प्रश्न- वायुमण्डलीय प्रकीर्णन को विस्तार से समझाइए।
  24. प्रश्न- विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रमी प्रदेश के लक्षण लिखिए।
  25. प्रश्न- ऊर्जा विकिरण सम्बन्धी संकल्पनाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। ऊर्जा
  26. प्रश्न- स्पेक्ट्रल बैण्ड से आप क्या समझते हैं?
  27. प्रश्न- स्पेक्ट्रल विभेदन के बारे में अपने विचार लिखिए।
  28. प्रश्न- सुदूर संवेदन की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- सुदूर संवेदन की कार्य प्रणाली को चित्र सहित समझाइये |
  30. प्रश्न- सुदूर संवेदन के प्रकार और अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- सुदूर संवेदन के प्लेटफॉर्म से आपका क्या आशय है? प्लेटफॉर्म कितने प्रकार के होते हैं?
  33. प्रश्न- सुदूर संवेदन के वायुमण्डल आधारित प्लेटफॉर्म की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- भू-संसाधन उपग्रहों को विस्तार से समझाइए।
  35. प्रश्न- 'सुदूर संवेदन में प्लेटफार्म' से आप क्या समझते हैं?
  36. प्रश्न- वायुयान आधारित प्लेटफॉर्म उपग्रह के लाभ और कमियों का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- विभेदन से आपका क्या आशय है? इसके प्रकारों का भी विस्तृत वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- फोटोग्राफी संवेदक (स्कैनर ) क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- सुदूर संवेदन में उपयोग होने वाले प्रमुख संवेदकों (कैमरों ) का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- हवाई फोटोग्राफी की विधियों की व्याख्या कीजिए एवं वायु फोटोचित्रों के प्रकार बताइये।
  41. प्रश्न- प्रकाशीय संवेदक से आप क्या समझते हैं?
  42. प्रश्न- सुदूर संवेदन के संवेदक से आपका क्या आशय है?
  43. प्रश्न- लघुतरंग संवेदक (Microwave sensors) को समझाइये |
  44. प्रश्न- प्रतिबिंब निर्वचन के तत्वों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- सुदूर संवेदन में आँकड़ों से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- उपग्रह से प्राप्त प्रतिबिंबों का निर्वचन किस प्रकार किया जाता है?
  47. प्रश्न- अंकिय बिम्ब प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- डिजिटल इमेज प्रक्रमण से आप क्या समझते हैं? डिजिटल प्रक्रमण प्रणाली को भी समझाइए।
  49. प्रश्न- डिजिटल इमेज प्रक्रमण के तहत इमेज उच्चीकरण तकनीक की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- बिम्ब वर्गीकरण प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
  51. प्रश्न- इमेज कितने प्रकार की होती है? समझाइए।
  52. प्रश्न- निरीक्षणात्मक बिम्ब वर्गीकरण और अनिरीक्षणात्मक बिम्ब वर्गीकरण के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
  53. प्रश्न- भू-विज्ञान के क्षेत्र में सुदूर संवेदन ने किस प्रकार क्रांतिकारी सहयोग प्रदान किया है? विस्तार से समझाइए।
  54. प्रश्न- समुद्री अध्ययन में सुदूर संवेदन किस प्रकार सहायक है? विस्तृत विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- वानिकी में सुदूर संवेदन के अनुप्रयोगों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- कृषि क्षेत्र में सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी की भूमिका का सविस्तार वर्णन कीजिए। साथ ही, भारत में कृषि की निगरानी करने के लिए सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने हेतु सरकार द्वारा आरम्भ किए गए विभिन्न कार्यक्रमों को भी सूचीबद्ध कीजिए।
  57. प्रश्न- भूगोल में सूदूर संवेदन के अनुप्रयोगों पर टिप्पणी लिखिए।
  58. प्रश्न- मृदा मानचित्रण के क्षेत्र में सुदूर संवेदन के अनुप्रयोगों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- लघु मापक मानचित्रण और सुदूर संवेदन के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  60. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र का अर्थ, परिभाषा एवं कार्यक्षेत्र की व्याख्या कीजिए।
  61. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के भौगोलिक उपागम से आपका क्या आशय है? इसके प्रमुख चरणों का भी वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के विकास की विवेचना कीजिए।
  63. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली का व्याख्यात्मक वर्णन प्रस्तुत कीजिए।
  64. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के उपयोग क्या हैं? विस्तृत विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र (GI.S.)से क्या तात्पर्य है?
  66. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के उद्देश्य बताइये।
  68. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र का कार्य क्या है?
  69. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के प्रकार समझाइये |
  70. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र की अभिकल्पना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के क्या लाभ हैं?
  72. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली में उपयोग होने वाले विभिन्न उपकरणों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली में कम्प्यूटर के उपयोग का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  74. प्रश्न- GIS में आँकड़ों के प्रकार एवं संरचना पर प्रकाश डालिये।
  75. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के सन्दर्भ में कम्प्यूटर की संग्रहण युक्तियों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- आर्क जी०आई०एस० से आप क्या समझते हैं? इसके प्रशिक्षण और लाभ के संबंध में विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली में प्रयोग होने वाले हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- ERDAS इमेजिन सॉफ्टवेयर की अपने शब्दों में समीक्षा कीजिए।
  79. प्रश्न- QGIS (क्यू०जी०आई०एस०) के संबंध में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- विश्वस्तरीय सन्दर्भ प्रणाली से आपका क्या आशय है? निर्देशांक प्रणाली के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- डाटा मॉडल अर्थात् आँकड़ा मॉडल से आप क्या समझते हैं? इसके कार्य, संकल्पना और उपागम का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- रॉस्टर मॉडल की विवेचना कीजिए। इस मॉडल की क्षमताओं का भी वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- विक्टर मॉडल की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- कार्टोग्राफिक संकेतीकरण त्रिविम आकृति एवं मानचित्र के प्रकार मुद्रण विधि का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- रॉस्टर मॉडल की कमियों और लाभ का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- विक्टर मॉडल की कमियों और लाभ के सम्बन्ध में अपने विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- रॉस्टर और विक्टर मॉडल के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  88. प्रश्न- डेटाम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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